Type Here to Get Search Results !

धारा - 38 (शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता)

धारा - 38 (शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता)
काल्पनिक चित्र 

भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 कि धारा - 38

(शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता)

 शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती अन्तिम धारा 37 में वर्णित निर्बंधनो के अधीन रहते हुए, हमलावर की स्वेच्छया मृत्यु कारित करने या कोई अन्य अपहानि कारित करने तक है, यदि वह अपराध, जिसके कारण ऐसे अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिन्पश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात् :-

(क) ऐसा हमला, जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा,

(ख) ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर उपहति होगा: 

(ग) बलात्संग करने के आशय से किया गया कोई हमला,

(घ) प्रकृति-विरुद्ध काम-तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया कोई हमला;

(ङ) व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला,

(च) इस आशय से किया गया कोई हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिरोध किया जाए, जिनसे उसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा,

(छ) अम्ल फेंकने या देने का कृत्य, या अम्ल फेंकने या देने का प्रयास करना जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि ऐसे कृत्य के परिणामस्वरूप अन्यथा घोर उपहति कारित होगी।


(IPC) की धारा 100 को (BNS) की धारा 38 में बदल दिया गया है।
(IPC) की धारा 100 को (BNS) की धारा 38 में बदल दिया गया है।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.